Saturday 17 November 2018

"बस यूं हीं"


कुछ लिखना तुम प्यारा सा
जिसे पढ़कर मैं पुलकित सी रहूं
कुछ गढ़ना ऐसा न्यारा सा
मंद स्मित सी खिली रहूं।

शीत ऋतु की मादकता सा
मन मेरा आह्लादित हो
कुछ ऐसा संकेत भी हो
संकोच लाज से सिमटी रहूं।

नयनाभिराम आकर्षण मुझको
तनिक नहीं सुहाते हैं
तुम कहना लिखना "हम" जैसा
मैं तुम पर बली बली जाती रहूं।

उपवन की सुगंधी मनभावन
तुमको खींच पास बुलाएगी,
तुम तनिक न रुकना पथिक मेरे,
मैं निरख निरख इठलाती रहूं।

©Aditi"