Tuesday, 9 November 2021

Movie Review : Meenakshi Sundareshwar

Movie: Meenakshi Sundareshwar 
Language: Hindi 
Writer: Arash Vora & Vivek Soni
Director: Vivek Soni 
Available on: Netflix 

Plot: An extrovert, confident girl who's a diehard Rajnikant fan and watches all his movies "first day first show"; enters into an arranged marriage with an awkwardly shy engineer who is an introvert and claims that movies are so boring that they put him to sleep!

Shortly after their wedding, the couple gets into a long distance relationship due to circumstances. How they cope forms the rest of the story. 

My Review: A slow, predictable yet different tale of love than the regular Bollywood pulp.
Beautiful temples, locations, amazing sarees and jewellery and amidst that honest effort to show the Tamil culture which definitely engages you until almost the quarter of the movie. 

The narrative sometimes drags too much and at times the issues resolve abruptly without a proper closure! Anni's two scenes are an example of this and also the track of Meenakshi's old friend. Not to mention the boyfriend of her sister in law. Too many threads collected, weaving started and then the threads are chopped off suddenly!
Every character gets space to perform and get noticed and none of the actors have left the chance slip off.

Sanya Malhotra as Meenakshi is looking stunning and has acted well. She's straightforward, unique and firmly stands by what she believes in. 

Sundareshwar played by Abhimanyu Dassani, on the other hand is a little too shy and there are places in the movie where Sanya steals the scene clearly carrying his character too. Abhimanyu's character is not given enough space to rise above his primary issues like eager to jump into matrimony at a young age and desire to earn a lot of money. As a result, he jiggles between the two.

Music, lyrics of songs and cinematography is noteworthy. 
- Aditi 


Tuesday, 5 January 2021

Film Review - Midnight in Paris

बहुत कम फ़िल्में ऐसी होती हैं जो अपने पहले ही फ्रेम से दर्शक को अपने साथ इस कदर जोड़ लेती हैं कि आप उसके एक मूक पात्र की तरह कहानी में शामिल हो जाते हैं।  
वुडी एलेन की 41वीं फिल्म "मिडनाइट इन पेरिस" ऐसी ही एक ख़ूबसूरत फिल्म है। लगभग दो-ढाई मिनट के मॉन्टाज़ के साथ फ़िल्म की शुरुआत होती है जिसमें पेरिस के बेहतरीन स्टॉक शॉट्स का लाजवाब इस्तेमाल किया गया है। एक खाली बेंच देख कर आप ख़ुद को "Si tu vous ma mere" सुनते हुए, वहाँ imagine करने से रोक नहीं पाएंगे। और इस सब से ये हिंट मिल जाता है कि 'Jazz Age' तक का आपका सफ़र Gil (protagonist) के साथ बहुत मज़ेदार होने वाला है। अगर आप आर्ट, लिटरेचर, थिएटर से मोहब्बत करते हैं तो ये फ़िल्म यहीं आपकी कमज़ोर नब्ज़ पकड़ चुकी है!

Nostalgic लेखक और प्रेम में लगभग निराश (पर फ़िलहाल अनभिज्ञ) गिल पेंडर अपनी मंगेतर के साथ पेरिस आता है। एक बार, शाम को अपने होटल वापस जाते समय, वो भटक जाता है पेरिस की ख़ूबसूरत गलियों में, और, पहुँच जाता है 1920 के दशक के शहर में! जहां Gertrude Stein, Fitzgerald, Hemingway, Picasso और दूसरी कई क्रिएटिव प्रतिभाएं रहती हैं, ज़िन्दगी को ज़िंदादिली से जीती हैं, प्यार करती हैं, असफल होती हैं और सृजन करती हैं। गिल को पता चलता है कि वह वास्तव में वो टाइम ट्रेवल कर के "Jazz Age" प्रवेश कर चुका है! 
7.7 imdb rating और 83% ऑडिएंस वोट्स - राॅटन टोमैटोज़ के अलावा Cannes प्रेस स्क्रीनिंग में भी दिग्गजों को इस फ़िल्म ने मंत्रमुग्ध कर दिया।

यह फिल्म Literarure के स्टूडेंट्स लिए एक daydream की तरह है।

ओवेन विल्सन ने गिल के किरदार को को इतना ईमानदार, इतना उत्साही बनाया है कि आप उसकी सहजता से मुस्कुरा उठते हैं। फिल्म का हर किरदार अपने आप में बहुत अच्छा है पर मुझे सबसे ज़्यादा अच्छे लगे दो लोग - पहली फिक्शनल कैरैक्टर 'एड्रिआना' जिसे निभाया अकेडमी अवार्ड विजेता French अभिनेत्री Marion Cotillard ने। अपनी जादुई आँखों से वो हर डायलॉग के undertone को इतने अच्छे ढंग से व्यक्त करती हैं कि उनकी सम्मोहक मुस्कराहट के पीछे छुपा सच झलक जाता है। 
दूसरे वो हैं जो एक मेहनती और प्रतिभाशाली चरित्र अभिनेता के रूप में विख्यात हैं यानि 'कोरी स्टोल' जिन्होंने अब तक के सबसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों में से एक को चित्रित किया - अर्नेस्ट हेमिंग्वे की भूमिका! वो हर सीन में दूसरे अभिनेता / अभिनेत्रिओं को literally खा गए। उनकी डायलॉग डिलीवरी, बॉडी लैंग्वेज - सब कुछ सबसे अलहदा और ख़ास!
थोड़ी slow लग सकती है ये फ़िल्म आपको लेकिन अगर poetry ko सिल्वर स्क्रीन पर देखना हो, तो ये यकीनन एक बेमिसाल फ़िल्म है।