Sunday, 25 October 2020

Book Review : Janta Store (English)

Name of Book: Janta Store 
Language: Hindi
Author: Naveen Choudhary ji
Genre: Contemporary Fiction / Political
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Plot: The story of the book revolves around four friends who are students of the university who get in contact with senior student leaders of the university after a fight with a hostel goon and then the life of these friends changes.

Review:  Janta Store is a market in Bapu Nagar, Jaipur which is the meeting point (adda) of youth.

The author has studied in the University of Rajasthan so the knowledge of the geography of the city as well as the (in)famous Rajasthan University election scenario is very well depicted in the book.

Anyone who has been a part of the University of Rajasthan in his student life will be able to relate with the content.

College Politics teaches all the tricks required to enter national politics. This novel exposes the planning & plotting and conspiracies of politicians are engrossed in casteism and dirty politics. 

Reading it was like turning the pages down once own life and re-living the student politics days the madness of University elections.
 
The language is easily understandable. There is no  unnecessary usage of tough or challenging words to show off one's literary command which I liked.
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The book is understandable and relatable for all and sundry and has the capacity to be popular which it already is.
The writer has used his pen to successfully craft some sarcastic remarks on politics and caste based politics which are a treat to read.

Overall a good book in contemporary Hindi writing and should be read.

 - Aditi Jain

Monday, 19 October 2020

Book Review - The Last Murder by Abhilekh Dwivedi

 of "The Last Murder" - Abhilekh Dwivedi

लिखने पढ़ने का शौक रखने वालों से एक सवाल!

क्या हो अगर आपकी लिखी / पढ़ी जा रही किताब का कोई क़िरदार जीवंत हो उठे? कोई किस्सा सच हो जाए? आप कहेंगे कि खूबसूरत संयोग सा है। 

लेकिन तब क्या हो जब मर्डर मिस्ट्री असल ज़िन्दगी में सच होने लगे?!! एक पब्लिश्ड किताब जो सफल हो चुकी हो, उसी के हिसाब से मर्डर पे मर्डर होने लगें? 

जैसे कॉर्पोरेट में नंबर्स के ऊपर किसी चीज़ को तरज़ीह नहीं दी जाती वैसे ही कमोबेश यही हाल हर फील्ड का होता जा रहा है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के चलते healthy competition और co-exist करने वाले फलसफे कहीं पीछे छूटते चले जा रहे हैं। ऐसे में हर कोई शक के दायरे में आता है। पाठक, पब्लिशर, यहां तक की खुद राइटर भी! कौन है जो खून पर खून कर रहा है और क्यों?

कहीं कोई पब्लिसिटी स्टंट तो नहीं जो खूनी खेल में बदल गया? 

इन ढेर सारे सवालों के बीच आपको छोड़ता है Abhilekh Dwivedi जी का नया उपन्यास "The Last Murder".

एक एक कर आठ कड़ियाँ आ चुकी हैं और हर बार सस्पेंस गहराता जाता है।  

कुछ यादगार वन लाइनर्स (जो अभिलेख जी का USP बन चुकी हैं) आपको यहाँ भी मिलेंगी, जैसे - 

"उसे पता था कि किस जगह अपनी उपस्थिति कैसे दर्ज करवानी है क्योंकि उसका मक़सद लेखन से राजनीति की और मुड़ना है और इसके लिए ग्राउंड पर पहचान या कहें कि रीच की बहुत ज़रूरत होती है।" 

या फिर - 

"बुक के बिज़नेस में बेस्टसेलर नहीं भी बनो तो कोशिश यही सबकी रहती है कि किताब सबसे ज़्यादा चर्चा बटोरे, भले बिके कम।" 

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नयी हिन्दी का भरपूर उपयोग इसे millenials के बीच ख़ासा लोकप्रिय बनाने की क्षमता रखता है लेकिन इसका सब्जेक्ट और कॉन्टेंट काफ़ी दमदार है और हर उम्र के लोगों को पसंद आएगा। 

अभिलेख जी की लिखी बाकी किताबों से काफ़ी अलग ट्रीटमेंट इस बार।  

हर कैरेक्टर well defined है और सबको अपना स्पेस मिला है।

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अगर वाकई अलग और नया पढ़ने का शौक रखते हैं, तो जल्दी इसे पढ़ डालिए, सस्पेंस अगली कड़ी का इंतज़ार मुश्किल कर देगा आपके लिए। एक अच्छी किताब के लिए आपको बहुत बहुत बधाई अभिलेख जी और ढेर सारी शुभकामनाएं 🙏🏻😊

Aditi Jain