क्षितिज के पार,
सुदूर गगन के किसी शांत कोने में
उड़ते बादल पर
सुदूर गगन के किसी शांत कोने में
उड़ते बादल पर
किसी वीराने में
अंधेरों में खुद से डरते जर्जर हाल
खंडहर की मुंडेर पर
अंधेरों में खुद से डरते जर्जर हाल
खंडहर की मुंडेर पर
अपनी किरचों से
आँखों के कोनों को कुरेदते सपनों के दिए
ताज़ा घावों पर
आँखों के कोनों को कुरेदते सपनों के दिए
ताज़ा घावों पर
या आँखों से झलकती
हृदय की गहराइयों से निकली अधरों पे खिली
मुस्कान पर
हृदय की गहराइयों से निकली अधरों पे खिली
मुस्कान पर
बोलो कब कहाँ मिलोगे?
-अदिति जैन
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