Monday 21 August 2017

शांत अकेली रात में...

शांत अकेली रात में.........
तुम्हारी तस्वीर से अपनी तस्वीर जोड़ना
एक ख़याल से अपनी सोच जोड़ना
और अपने आप पर हँस देना।
कुछ अनकहे वादों को सुनना
अपनी हथेली पर तुम्हारा नाम लिखना
फिर उसे झेंपकर मिटा देना।
ज़बान पर तुम्हारे शब्दों की मिश्री रखना
मिठास में भी कड़वाहट को अनुभव करना
और उस स्वाद को उगल देना।
दिन में सपनों की डोर को बुनना
शाम पड़े उस डोर से अपनेआप बंधना
फिर रात में उसे समूचा उधेड़ देना।
अक़्सर मिटाने से हथेलियों का लाल पड़ना
उधेड़ने से सोच का और उलझना
और कुछ दिखाई या सुनाई न देना।
रात से सुबह तक बेहोश सा जगना
सुबह टूटे फूटे अधूरे सपनों को समेटना
फिर नियति को मौन स्वीकृति देना।
- अदिति (अदा)

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